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PATNA: लोकसभा के चुनावी रंग में रंगते बिहार में राजनीतिक हमले तेज हो गए हैं। हर प्रतिद्वंदी दल एक दूसरे को कमजोर बताने और करने में लगा है। जब से राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भाजपा को केंद्र से अपदस्थ करने की रणनीति पर काम करना शुरू किया है तब से जनता दल यूनाइटेड पर हमले तेज हो गए हैं। इस हमले में लगातार ये दावा किया जा रहा की जदयू में भारी टूट होने जा रही है। यह दावा कभी उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक जनता दल की तरफ से होता है, तो कभी बीजेपी के प्रवक्ताओं ,विधायकों की तरफ से भी। सवाल यही है कि इन दावों में कितना दम है।
क्यों हो रहे जदयू में टूट के चर्चे?
विपक्षी एकता मुहिम की अगुवाई कर रहे नीतीश कुमार की जेडीयू भाजपा के निशाने पर है। एक तय रणनीति के तहत भाजपा एक-एक कर जदयू के तमाम नकारात्मक बातों को उजागर करने में लगी है। ऐसा इसलिए कि देश की सियासत करने निकले नीतीश कुमार को वह समर्थन नहीं मिले जिसकी वो उम्मीद कर रहे हैं। इसलिए भाजपा अब जदयू को ऐसी पार्टी के रूप में प्रचारित कर रही है कि इस पार्टी का नीतीश कुमार के बाद कोई नामलेवा नहीं रहेगा। हालांकि ये चर्चा यूं ही नहीं है, इसके पीछे चार फैक्टर हैं।
पहला- जदयू के आधार पर भाजपा का हमला
दरअसल जनता दल यू की नींव ही राष्ट्रीय जनता दल के जंगल राज के विरुद्ध रखी गई थी। एक समय था जब राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद और नीतीश कुमार की जोड़ी पिछड़ी राजनीति के नामवर हुआ करते थे। लेकिन धरातल पर दो जातियों के आपसी संघर्ष ने लालू प्रसाद और नीतीश कुमार के बीच की दूरी बढ़ा दी। तब नीतीश कुमार ने लालू प्रसाद की राजनीति के विरुद्ध समता पार्टी बना कर राजनीति का एक नया समीकरण तैयार किया जिसे सवर्णों को भी साथ मिला। बाद में नीतीश कुमार ने तब एमवाई समीकरण के विरुद्ध भाजपा के साथ मिलकर एक नई राजनीति की नींव रखी और फिर धीरे धीरे एनडीए मजबूत होती चली गई।
दूसरा- तेजस्वी यादव को नेतृत्व सौंपने की घोषणा
जदयू के लिए सबसे नुकसान देने वाली है नीतीश कुमार की वह घोषणा जिसमें उन्होंने तेजस्वी यादव को 2025 में विरासत सौंपने की बात कह दी। नीतीश कुमार की इस घोषणा से पार्टी के भीतर काफी निराशा आ गई। खास कर ऐसे नेताओं में, जो सोचते थे कि कभी न कभी जदयू का नेतृत्व करने का उन्हें मौका मिलेगा। लेकिन नीतीश कुमार ने इन संभावनाओं का दरवाजा हमेशा लिए ही बंद कर दिया। संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष रहे उपेंद्र कुशवाहा ने इसी मसले पर नीतीश कुमार से नाता तोड़ डाला। कुशवाहा को उम्मीद है कि ऐसे कई लोग JDU के भीतर होंगे जो नीतीश कुमार के इस फैसले से खुश नहीं होंगे, पर वो किसी खास समय का इंतजार कर रहे हैं। समता पार्टी से ले कर जनता दल यू के फॉर्मेशन तक जो नेता साथ रहे, वो राजद से विरोध की राजनीति करने आए थे। उनकी राजनीति को यह नया रिश्ता रास नहीं आ रहा है। ऐसे लोग कभी भी जदयू से नाता तोड सकते हैं।
तीसरा- जदयू का आधार वोट भी नाराज
सियासी विरासत को तेजस्वी यादव को सौंपना भी नीतीश कुमार के आधार वोट को रास नहीं आया। ब्लॉक से लेकर जिला कार्यालय तक राजद और जदयू के प्रतिनिधि भी इस गठबंधन से सहज नहीं हैं। राज्य में हुए तीन उपचुनाव में यह नाराजगी दिखी भी। भाजपा की तरफ जाता यह वोट बैंक नीतीश कुमार के बिगड़ते समीकरण का गवाह भी रहा। वर्तमान स्थिति तो और भी खराब है। जदयू के आधार वोट में सेंधमारी के लिए जदयू से निकले उपेंद्र कुशवाहा और आरसीपी सिंह ने अलग मोर्चा खोल लिया है। उस पर भाजपा के ने सम्राट चौधरी को प्रदेश अध्यक्ष बना कर एक तरह से जेडीयू के आधार वोट की ओर सियासी दाना फेंक दिया है।
चौथा- सांसदों और विधायकों की मुश्किल
ऐसा नहीं है कि जदयू का राजद से मिलन को ले कर पार्टी के भीतर सबकुछ ठीक चल रहा है। खास कर वैसे विधायक और सांसद जो एनडीए के आधार वोट यानी जदयू और भाजपा के आधार वोट से जीत कर आए हैं, वो इस गठबंधन की राजनीति से खुश नहीं हैं। चर्चा है कि ऐसे विधायक या सांसद अपने अधिकार का अंतिम दम तक इस्तेमाल करने के बाद कोई फैसला करेंगे। इनका ध्यान महागठबंधन और भाजपा नीत गठबंधन के स्वरूप पर भी होगा। और वे बनते बिगड़ते समीकरण को अंत अंत तक देखेंगे। जिधर पलड़ा भारी होगा उधर शिफ्ट करेंगे। इसके अलावा जदयू के संगठन और सत्ता में कई ऐसे लोग ऐसे हैं जो किसी भी हाल में तेजस्वी यादव के नेतृत्व को स्वीकार नहीं करेंगे। ऐसे नेता दल बदल कर अपनी राजनीति की धार को तेज रखने का काम करेंगे।
उपेंद्र कुशवाहा और बीजेपी के दावे
जेडीयू संसदीय बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष और राष्ट्रीय लोक जनता दल के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा ने एक बार फिर से दावा किया है कि जल्द ही जेडीयू में बड़ी टूट होने वाली है। उन्होंने जेडीयू को डूबता हुआ जहाज बताते हुए ये भी दावा किया है कि जेडीयू के कई शीर्ष नेता उनके सम्पर्क में हैं। कुशवाहा का दावा है कि जेडीयू में टूट की तस्वीर जल्द ही सामने आएगी। हालांकि उपेंद्र कुशवाहा ने जेडीयू के उन नेताओं के नाम का खुलासा नहीं किया है जो उनके सम्पर्क में हैं और जो जदयू छोड़ कर जाना चाहते हैं। कुछ इसी अंदाज में पूर्व मंत्री नीरज बबलू ने भी जदयू में टूट का दावा किया। उन्होंने कहा कि जदयू के कई वरिष्ठ नेता बीजेपी के संपर्क में हैं। साथ में यह भी दावा किया है कि जेडीयू के कई विधायक और कई सांसदों ने बीजेपी के सिंबल पर चुनाव लड़ने की इच्छा जताई है।