‘कहीं पे निगाहें, कहीं पे निशाना’ नीतीश कुमार को बिहार से बाहर भेजने को क्यों बेचैन है आरजेडी! - RJD and Nitish Kumar Relations
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‘कहीं पे निगाहें, कहीं पे निशाना’ नीतीश कुमार को बिहार से बाहर भेजने को क्यों बेचैन है आरजेडी! - RJD and Nitish Kumar Relations

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PATNA
: नीतीश कुमार को बिहार से बाहर भेजने के लिए आरजेडी इतना बेचैन क्यों है? जेडीयू भी आरजेडी के साथ सुर-ताल मिलाने में पीछे नहीं। नीतीश को पीएम मटेरियल से लेकर पीएम के दावेदार तक बताने-कहने के संकेत क्या हैं? अगर सब कुछ नीतीश की शुभेच्छा में है तो फिर नीतीश कुमार के बार-बार इनकार के मायने क्या हैं? जिस आरजेडी के पास अभी एक भी सांसद लोकसभा में नहीं है और दो बार नरेंद्र मोदी से टकरा कर वह अपनी हालत-हैसियत देख चुका है, वह किसी को पीएम किस कूबत से बना सकता है? ऐसे ही सवालों पर बिहार के सियासी महकमे में खूब चर्चा हो रही है।

पीएम मोदी से टकरा कर औकात देख चुका है आरजेडी

नरेंद्र मोदी 2014 और 2019 में बीजेपी के घोषित पीएम फेस थे। उनसे बिहार में अकेले-अकेले जेडीयू और आरजेडी पहली बार यानी 2014 में टकरा चुके हैं। नीतीश को तो सफलता के नाम पर दो ही सीटों पर जीत हासिल हुई थी। आरजेडी ने जरूर जेडीयू पर अपनी दबंगई दिखाई और उसे 40 में 4 सीटें आ गईं। आज बिहार की सत्ता की सिरमौर बने दोनों दल- आरजेडी-जेडीयू से तो राम विलास पासवान की तत्कालीन लोजपा रही, जिसने बीजेपी की अंगुली पकड़ कर 6 सीटें जीतने में कामयाबी हासिल की थी। उनका सक्सेस रेट बीजेपी से भी ज्यादा था। बीजेपी ने 30 सीटों पर उम्मीदवार उतार कर 22 सीटें जीतीं तो 7 सीटों पर कैंडिडेट देकर 6 सीटें लोजपा ने झटकी थीं। उपेंद्र कुशवाहा की तत्कालीन रालोसपा ने भी 3 में 3 सीटें जीत कर नीतीश को बता दिया था कि आप से हम औकात में आगे हैं। हालांकि लोजपा और रालोसपा की कामयाबी के पीछे बीजेपी का समर्थन था, जिसने नरेंद्र मोदी के चेहरे पर चुनाव लड़ा।

बीजेपी से सटने पर 2019 में नीतीश का चेहरा चमका

2014 में बुरी तरह मात खाने के बाद 2019 के लोकसभा चुनाव के वक्त नीतीश कुमार बीजेपी के साथ आ चुके थे। बीजेपी ने अपना नुकसान कर नीतीश को जबरदस्त फायदा दिलाया। सबसे पहले 2014 में अपनी जीती हुई 22 सीटों में से बीजेपी ने 5 नीतीश कुमार के जेडीयू के लिए खाली कर दीं। बराबर-बराबर सीटों पर लड़ कर नीतीश अपने 16 लोगों को लोकसभा भेजने में कामयाब रहे थे। नीतीश को भ्रम हुआ कि उनका जादू अब भी बरकार है। इसका असल एहसास उन्हें 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान हुआ, जब बीजेपी के बराबर सीटों पर लड़ने के बावजूद उनके 43 उम्मीदवार ही विधानसभा पहुंच पाए थे। सबसे मजेदार पहलू यह रहा कि आरजेडी को जनता ने 2019 में एक भी सीट नहीं दी थी।

जिसके पास एक सांसद नहीं, वह बना रहा पीएम फेस

साधारण शब्दों में कहें तो 17वीं लोकसभा चुनाव में एक भी सीट नहीं मिल पाने के बावजूद आरजेडी की ओर से बार-बार नीतीश कुमार को पीएम फेस बताने की कोशिश की जा रही है। दो दिन पहले ही आरजेडी ने एक पोस्टर लगाया था, जिसमें नीतीश को पीएम के रूप में दिखाया गया था। हालांकि बाद में यह पस्टर हटा लिया गया। शायद महागठबंधन के वरिष्ठ नेता होने के नाते नीतीश ने ही पोस्टर हटाने की सलाह दी हो। यह संभावना इसलिए जताई जा रही है कि दिल्ली से लौटने के बाद नीतीश को पीएम बनाने के नारे उनकी पार्टी जेडीयू के लोगों ने लगाए तो उन्होंने हाथ जोड़ कर ऐसा न करने की अपील की थी।

पीके भी आरजेडी का इसी बात से उड़ा रहे मजाक

चुनावी रणनीतिकार से जेडीयू के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष तक का सफर तय करने वाले प्रशांत किशोर उर्फ पीके आरजेडी और नीतीश कुमार की आलोचना से अब परहेज नहीं करते। इसलिए कि अब उनका जेडीयू से कुछ लेना-देना नहीं है। उल्टे उन्होंने जन सुराज नामक एक संगठन बना लिया है और बिहार के गांव-गांव की पदयात्रा में फिलहाल लगे हुए हैं। वे आरजेडी और जेडीयू के शासन की आलोचना में कोई कसर नहीं छोड़ते। हालांकि उनके निशाने पर पीएम मोदी भी कई बार रहते हैं। प्रशांत ने भी कहा है कि आरजेडी को पहले अपनी औकात देखनी चाहिए कि जिसे पिछले लोकसभा चुनाव में एक सीट नहीं मिल पाई, वह पीएम बनाने की घोषणा कर रहा है।

आरजेडी का निशाना सीएम की कुर्सी पर तो नहीं!

आरजेडी की कमान अभी डेप्युटी सीएम तेजस्वी यादव संभाल रहे हैं। विधानसभा के बजट सत्र में उन्होंने साफ कर दिया था कि वे सीएम बनना नहीं चाहते। उससे पहले भी उन्होंने कहा था कि उन्हें सीएम बनने की हड़बड़ी नहीं है। इसी क्रम में वह यह भी बता गए कि नीतीश कुमार को भी पीएम नहीं बनना है। हालांकि नीतीश कुमार खुद यह बात कई बार कह चुके हैं। इसके बावजूद आरजेडी के पोस्टर में नीतीश को पीएम के रूप में दिखाने का औचित्य क्या है। जगदानंद सिंह का यह कहना कि नीतीश पीएम बन कर रहेंगे। उन्हें लालू ने जीत का टीका लगा दिया है। आरजेडी विधायक सुधाकर सिंह की जुबान नीतीश कुमार की आलोचना में अब भी बंद नहीं हो रही। इससे एक ही बात स्पष्ट होती है कि विपक्षी एकता के बहाने नीतीश कुमार को जल्दी बिहार से बाहर का रास्ता दिखाया जाए, ताकि तेजस्वी को उनकी कुर्सी मिल जाए। तेजस्वी भी नीतीश कुमार की विपक्षी एकता की मुहिम में न सिर्फ उनका साथ दे रहे, बल्कि उनका काम भी आसान करने में लगे हैं। वैसे नीतीश राजनीति के कच्चे खिलाड़ी नहीं हैं। उन्होंने पहले ही 2025 तक अपनी कुर्सी सुरक्षित रखने का ऐलान कर दिया है। वह देखना चाहेंगे कि विपक्षी एकता का स्वरूप कैसा आकार लेता है। उन्हें किस भूमिका में विपक्ष रखना चाहता है। सारी परख-पड़ताल के बाद ही वे कोई घोषमा करेंगे। अभी तक की स्थिति उन्हें अनुकूल नहीं लगती। शायद यही वजह है कि वे पीएम बनने की बात को नकार दे रहे हैं।

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