विकास विद्यालय डूमरी में चल रहे नाट्य कार्यशाला का समापन 31 अगस्त को
राजकिशोर सिंह की कविता संग्रह "शब्दों के संघर्ष" पर आधारित है नाटक
रिवाइवल के कार्यशाला निदेशक कुमार अभिजीत की परिकल्पना से बच्चों में आया निखार
BINOD KARN
BEGUSARAI : रिवाइवल नाट्य संस्था की ओर से एक पखवाड़े तक चलने वाले नाट्य प्रशिक्षण कार्यशाला का समापन व मंचन 31 अगस्त को होगा। 16 अगस्त से शुरू प्रशिक्षण कार्यशाला में बच्चों ने क्या हासिल किया इसे परखने की कोशिश की गई है। वैसे तो 31 अगस्त को जब आप मंचन को देखेंगे तो खुद तय करेंगे, लेकिन समय से पूर्व ही इसे साझा किया जा रहा है।
अभिजीत ने प्रशिक्षण देने के लिए राजकिशोर सिंह की कविता संग्रह "शब्दों के संघर्ष" में शामिल सभी 15 कविताओं को नाटक का आधार बनाया है। जिसमें एक कप चाय, अगला युद्ध पानी के लिए, आखिर लोग क्या कहेंगे, हकीकत, मुखौटा, तब या अब, भीड़, मैं कौन हूं, क्या हो गया, कुछ लिखूं, अर्थी भर भर्ती, राष्ट्र क्या कहेगा, जीना सस्ता नहीं, कैसे बचते हैं गुनाहगार व जीवन में मेला नहीं है- शामिल है। ये कविताएं छोटी-छोटी है पर संदेश बड़ा। सबसे बड़ी बात यह है कि रिवाइवल के कुमार अभिजीत की परिकल्पना व स्कूली बच्चों से 15 दिनों के प्रशिक्षण में मंचन के लिए तैयार करना सराहनीय है।
बीते दशकों की बात करें तो किसी पर्व पर नाटक मंचन के लिए एक माह पूर्व रिहर्सल शुरू कर दी जाती थी।
रिवाइवल बच्चों में रंग, रोशनी, गंध, दृश्य के साथ-साथ कमिटमेंट, सरोकार, समाज की बुनियादी चिंता के साथ कथ्य और संदेश को पूरी तीव्रता के साथ ध्वनित और स्पंदित करती है। संस्था अपने स्थापना काल से ही विलुप्त हो रही लोककला, समाज के अंतिम छोर पर छूट रहे ग्रामीण कलाकार और बच्चों को लेकर कार्य करती रही है। उसी कड़ी को आगे बढ़ाते हुए कार्यशाला के मुख्य प्रशिक्षक कुमार अभिजीत बच्चों को एकालाप, सार्थक संवाद, कल्पनाशीलता, एकाग्रता, दृश्यबंध, योगा के माध्यम से सार्थक संवाद स्थापित करने के गुण सिखाने में लगे हुए हैं। वहीं प्रशिक्षक रजनी कुमारी, राजेश कुमार व अमृता देवी बच्चों को संवेदना, चेतना, अनुभूति, संगीत, वस्त्र विन्यास, परिवेश की व्याख्या सिखाने में लगे हैं।
कार्यशाला में कुल 13 बच्चे नाटक के विविध आयाम को समझने और उसे करने में पूरे मनोयोग से लगे हुए हैं और इसमें रिवाइवल संस्था के मुख्य संरक्षक व विकास विद्यालय के निदेशक राजकिशोर सिंह अपना पूर्ण सहयोग दे रहे हैं। नाटक बच्चों को सुख-दुख, परिवेश और संगतियों को खुद में समाहित और स्वीकार करना सिखाती है।
नाटक जीवन में घर-घाट, खेत-खलिहान, गर्द-गुबार की दुनियां में धुंधले पड़े मामूली शब्द, चीजें, प्रकृति-लोक के नगण्य तथ्य को भी वजूद और प्रमाणिकता से भर देती है। इस कार्य कार्यशाला में भाग ले रहे बच्चे बखूबी और अर्थपूर्ण तरीके से सीखने का प्रयास कर रहे हैं। बच्चों की ऊर्जा और कला का एक सार्थक कोलाज ये नाट्य कार्यशाला प्रस्तुत कर रही है। बच्चों की आँखों में अपार तरलता और बेचैनी देखना तब सुखद लगता है जब बच्चे कला और संस्कृति से रू-ब-रू होते हैं।
कार्यशाला में आयुष कुमार, रजनीश कुमार, अभिनाश कुमार, आदर्श कुमार, दीपक कुमार, आदित्य कुमार, प्रिंस कुमार, प्रियांशु कुमार, रचित कुमार, अविनाश कुमार-2, लक्ष्य कुमार, अनिकेत सुलभ, मिहिर व मानस प्रतिभागी के रूप में शामिल हैं।
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