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सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार (28 अप्रैल) को बिहार में जाति जनगणना पर रोक की मांग वाली याचिका पर सुनवाई की. जाति आधारित सर्वेक्षण के खिलाफ याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ''पटना हाई कोर्ट 3 दिन में याचिका को सुन कर अंतरिम आदेश दे.'' याचिकाकर्ता ने कहा था कि 15 मई तक जनगणना पूरी हो जाएगी, लेकिन पटना हाई कोर्ट ने रोक का आदेश देने से मना कर दिया है.
याचिकाकर्ता 'यूथ फॉर इक्वलिटी' का कहना है कि पूरी प्रक्रिया बिना उचित कानूनी आधार के हो रही है. लोगों को जाति बताने के लिए बाध्य करना उनकी निजता का भी हनन है.
किसलिए हो रही जाति जनगणना?
बिहार सरकार राज्य में जातियों की संख्या और उनकी आर्थिक स्थिति का पता लगाने के लिए जाति जनगणना करा रही है. सरकार का कहना है कि इससे आरक्षण के लिए प्रावधान करने और विभिन्न योजनाओं के समुचित क्रियान्वयन में मदद मिलेगी.
2 चरणों में जाति जनगणना
बिहार में जाति जनगणना का फिलहाल दूसरा चरण चल रहा है. इसकी शुरुआत 15 अप्रैल को हुई थी, जो 15 मई तक चलेगा. पहले चरण की जाति जनगणना 7 जनवरी से शुरू होकर 21 जनवरी तक चली थी. रिपोर्ट्स के मुताबिक जाति जनगणना के काम में पांच लाख से ज्यादा कर्मचारियों को लगाया गया है. जनगणना के दौरान राज्य के सभी परिवारों से 17 तरह की जानकारियां मांगी जा रही हैं. जनगणना के दौरान प्राप्त होने वाली जानकारी उसके के लिए निर्धारित कोड के रूप में ऐप में दर्ज की जा रही है. माना जा रहा है कि जाति जनगणना के पूरे हो जाने पर इसकी रिपोर्ट बिहार विधानसभा और विधान परिषद में पेश की जाएगी और फिर उसे सार्वजनिक कर दिया जाएगा.
राजनीतिक दलों ने की थी जाति जनगणना की मांग
गौरतलब है कि बिहार में कई राजनीतिक दलों की ओर से लंबे समय से जाति गणना की मांग की जा रही थी. इसके चलते 18 फरवरी 2019 को और फिर 27 फरवरी 2020 को बिहार विधानसभा और विधान परिषद में जाति आधारित जनगणना से संबंधित प्रस्ताव पेश किया गया, जिसका सभी दलों ने समर्थन किया था. बता दें कि भारत सरकार ने भी 2011 की जनगणना में जाति गणना की थी लेकिन उसके आंकड़े सार्वजनिक नहीं किए गए थे.
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