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सीमांत मजदूरों और खेतिहरों के कवि रामावतार यादव शक्र की 38वीं पुण्यतिथि मनी
BINOD KARN
BEGUSARAI : अगर राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर तुलसीदास हैं तो कवि रामावतार यादव शक्र कबीर हैं। कवि रामावतार शक्र की कविताओं में किसान-मजदूरों की पीड़ा है। वे किसान-मजदूरों के वास्तविक गायक हैं। ये बातें बीएचयू में हिन्दी के प्रोफेसर रामाज्ञा राय शशिधर ने सिमरिया-2 पंचायत के रूपनगर में कही। अवसर था कविवर रामावतार यादव शक्र की 38वीं पुण्यतिथि का।
इससे पहले पूर्व सांसद शत्रुघ्न प्रसाद सिंह, प्रो. चंद्रभानु प्रसाद सिंह, प्रो. रामाज्ञा राय शशिधर, विधायक रामरतन सिंह, राजकिशोर सिंह, अशांत भोला, विश्वम्भर सिंह, हिमांशु शेखर, NTPC थर्मल के उप प्रबंधक उमेश निगम समेत अन्य अतिथियों ने रामावतार शक्र की प्रतिमा पर माल्यार्पण किया। इसके बाद अतिथियों ने संयुक्त रूप से दीप प्रज्ज्वलित कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया। इस अवसर पर अतिथियों ने ‘श्रमदेवता’ काव्य संग्रह का विमोचन किया। संयोजक राहत रंजन ने कवि शक्र के बारे में परिचय देते हुए विषय प्रवेश कराया।
प्रो. शशिधर ने कहा कि शक्र जी की संकलित कविताओं के संग्रह को ‘श्रमदेवता’ का रूप देना सुकून देता है। शक्र की हर कविता उनकी आत्मकथा है। शक्र हाशिए की आवाज हैं। कारखानों में होने वाले दोहन और जमींदारों के शोषण से पीड़ित हर तबके की आवाज हैं। उनकी कविताओं में दिनकर, निराला, पंत की छाप स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है। उन्होंने कहा कि अगर शक्र की कविताओं काे सही तरीके से संकलित किया जाए तो बेगूसराय जनपद के परिप्रेक्ष्य में अंग्रेजी शासन काल से लेकर अब तक करीब 100-150 साल का इतिहास सामने लाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि मेरी मंशा है कि बीएचयू से शक्र जी पर शोध हो। मेरी कोशिश है कि जल्द से जल्द शक्र समग्र को लोगों के बीच लाऊं।
LNMU दरभंगा के पूर्व मानविकी संकायाध्यक्ष प्रो. चंद्रभानु प्रसाद सिंह ने कहा कि शक्र जी कविताएं समय और समाज के दर्द व बेचैनी को दर्शाती है। मजदूर अंग्रेजी साम्राज्य में सर्वाधिक प्रताड़ित थे। उनका दोहरा शोषण होता था। एक तरफ अंग्रेज और दूसरी तरफ जमींदार, मजदूरों का शोषण करते थे। मजदूरों के शोषण को कवि शक्र ने न केवल देखा था बल्कि भोगा भी था। शक्र सीमांत मजदूरों और खेतिहरों के कवि हैं।
पूर्व सांसद शत्रुघ्न प्रसाद सिंह ने ‘श्रमदेवता’ पर परिचर्चा को आगे बढ़ाते हुए कहा कि रामावतार शक्र की कविताएं आम जनमानस की कविता है। उन्होंने शक्र जी की कविताओं की तुलना नागार्जुन, दिनकर, निराला की से की।
परिचर्चा में भाग लेते हुए हिमांशु शेखर ने कहा कि कवि जब यथार्थ का चित्रण करता है तो कविता स्वभाववश अंत:स्थल तक उतरती चली जाती है। कविता खास नहीं आम जनमानस की हो जाती है। कवि रामावतार यादव शक्र की शब्दमालाएं भी ऐसी ही हैं। शक्र की कविताओं में न तो बनावट है और न ही कृत्रिम बसावट। खेत-खलिहान की बाते हैं। किसान-मजदूरों का दर्द है। उनकी कविताओं में अन्न उपजाने का हर्ष है तो किसान की बीमार पत्नी और कंकाल सरीखे बच्चों का क्षोभ भी।
कार्यक्रम का संचालन प्रवीण प्रियदर्शी ने जबकि अध्यक्षता दिनकर पुस्तकालय के अध्यक्ष विश्वम्भर प्रसाद सिंह ने की। स्वागत भाषण पैक्स अध्यक्ष रामनुज राय ने दिया। समिति ने अंगवस्त्र प्रदान कर अतिथियों का स्वागत किया। कार्यक्रम के दूसरे सत्र में कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया। जिसमें अशांत भोला, प्रफुल्ल मिश्र, रामा मौसम, सच्चिदानंद पाठक समेत कई कवियों ने भाग लिया।