THN Network (VIKAS VERMA)
BEGUSARAI : मीठे पानी की एशिया की सबसे बड़ी झील और भारत की 39वीं रामसर साइट कांवर झील पक्षी विहार बिहार के बेगूसराय (Begusarai) में है। प्राकृतिक महत्व के कारण कांवड़ झील पक्षी विहार टूरिज्म (Tourism) का हाॅट स्पाॅट (HotSpot) बन सकता है।
यूं तो कांवड़ झील पक्षी विहार में बोटिंग का मजा लेने के लिए पर्यटक सालोंभर आते रहते हैं। लेकिन इस झील का जो प्राकृतिक महत्व माना जा रहा है उस लिहाज से पर्यटकों की संख्या यहां नहीं देखी जाती है।स्थानीय नाविक संतोष बताते हैं कि कांवर झील में यूं तो रोजाना सैलानी आते हैं। मगर जितना अच्छा और सुंदर यह झील है उतनी संख्या में यहां पर्यटक नहीं पहुंचते हैं। हालांकि सितंबर से जनवरी तक यहां सैलानियों की संख्या थोड़ी ज्यादा होती है। क्योंकि सर्दियों के मौसम में झील में बड़ी संख्या में विदेशी साइबेरियन पक्षी आते हैं। लिहाज़ा झील में बोटिंग के साथ-साथ विदेशी पक्षियों का दीदार करने भी बड़ी संख्या में पक्षी प्रेमी यहां सर्दियों में घूमने आते हैं। इस कारण सरकार ने कांवड़ झील को बर्ड सेंचुरी का भी दर्जा दे रखा है। हालांकि जानकारों का कहना है कि विदेशी पक्षियों की पहले जैसी आवाजाही अब यहां नहीं रही है। इसका कारण प्रकांतर में बड़ी संख्या में विदेशी पक्षियों का शिकार होना भी बताया जाता है। जिस कारण विदेशी पक्षियों की दुर्लभ प्रजातियां अब या तो यहां आती नहीं या फिर वह विलुप्त हो चुकी हैं। जानकारों का कहना है कि कांवर झील पक्षी विहार में 59 तरह के विदेशी पक्षी और 107 तरह के देसी पक्षी ठंड के मौसम में आते हैं।
बेगूसराय शहर से लगभग 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित कांवर झील बिहार की पहली रामसर साइट है। सैकड़ों की संख्या में पर्यटक यहां रोजाना आते हैं। लेकिन झील में जंगलों और खर पतवार की नियमित सफाई नहीं होने से झील की सुंदरता कम होती है और नौकायन में दिक्कतें पेश आती है। दूसरी प्रमुख समस्या मूलभूत सुविधाओं की कमी की है। शौचालय, पीने के लिए साफ पानी और पर्यटकों के ठहरने की व्यवस्था नहीं होने से यहां आने वालों को निराश करती है। सरकार की उदासीनता और संसाधन की कमी के कारण यह पर्यटन स्थल व्यापक रूप धारण नहीं कर सका है। लेकिन इसकी प्राकृतिक खूबसूरती और झील का मीठा पानी दूर-दूर से पर्यटकों को खींच लाती है। भारत की 39वीं रामसर साइट होने के बावजूद सरकार की उदासीनता के चलते ज्यादातर लोग इस झील के महत्व को नहीं समझ पा रहे हैं। हालांकि साल 1989 में ही बिहार सरकार ने 6311 हेक्टेयर क्षेत्रफल को बर्ड सेंचुरी बनाने की घोषणा की थी। लेकिन इसके बावजूद झील को सुंदर बनाने के लिए सरकार ने कोई कदम नहीं उठाए। अलबत्ता एक वाच टाॅवर बनाकर सरकार ने वर्ड सेंचुरी की खानापूर्ति कर दी है।
कांवर झील के प्राकृतिक महत्व को अगर समझे और टूरिस्ट स्पॉट के तौर पर विकसित करे तो बेगूसराय का यह क्षेत्र एक बड़ा टूरिज्म सेंटर बन सकता है। कांवर पक्षी विहार क्षेत्र में ही ऐतिहासिक पुरातत्त्वीय महत्व का बौद्धकालीन हरसाइन स्तूप और सिद्धपीठ माता जयमंगला का मंदिर भी है। कहा जाता है कि यहां भगवान बुद्ध भी आए थे।
जाहिर तौर पर कांवड़ झील पक्षी विहार का यह क्षेत्र बड़े टूरिज्म सेंटर में स्थापित होने के सभी मानदंडों पर खड़ा उतरता है। जरूरत है तो सरकारों को इस तरफ मजबूत पहल करने की।