सद्भाव की भूमिका निभा रहा साई की रसोई, मां के इंतकाल पर महफूजुर रशीद ने भी बांटा खाना
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सद्भाव की भूमिका निभा रहा साई की रसोई, मां के इंतकाल पर महफूजुर रशीद ने भी बांटा खाना




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BINOD KARN 

BEGUSARAI : सदर अस्पताल बेगूसराय में इलाज के लिए आने वाले निर्धन मरीजों के एटेंडेंट को सस्ते दरों दर पर भोजन परोसने के उद्देश्य से शुरू किया गया साई की रसोई ने पांच साल पूरे कर लिए हैं। इस बीच यह काम अनवरत जारी रहा। खास बात यह है कि सदर अस्पताल परिसर में जीविका दीदी द्वारा कैंटीन चलाने के बाद भी संध्या समय में साई की रसोई का खाना आने का लोग इंतजार करते हैं। यूं तो मौसम के हिसाब से भोजन परोसने का समय बदलता रहता है लेकिन जरूरतमंदों को इसकी सूचना मिल जाती है। प्रतिदिन 150-200 लोगों को यहां महज 5 रुपये में भोजन मिलता है। जिनके पास उतने पैसे भी नहीं उन्हें भी भोजन दिया जाता है। ऐसा भी नहीं है कि सिर्फ सदर अस्पताल के मरीजों के एटेंडेंट को ही खाना दिया जाता है बल्कि आसपास के निर्धन भी इसका लाभ उठाते हैं। खास बात यह है कि भोजन परोसने में जाति व धर्म नहीं देखी जाती है बल्कि जो कतार में लग उन्हें खाना मिलना तय है। 

सस्ते दर पर खाना परोसने के लिए कहां से आता है पैसा

जी हां, आपको लगता होगा कि सस्ते दर पर भोजन परोसने के लिए साई की रसोई को पैसा आता कहां से है। बताते चलें कि साई के रसोई के स्थायी सदस्य अपने आय से प्रति माह राशि डुनेट करते हैं। इसके अलावा आमलोग जन्मदिन व पितरों के बरसी पर साई की रसोई से संपर्क करते हैं और एक दिन के भोजन का खर्च उठाते हैं। उनसे उतनी ही राशि ली जाती है जितना एक शाम भोजन का खर्च। मसलन संस्था सिर्फ भोजन बनाने व बांटने की भूमिका में ही रहती है। धार्मिक भावना के तहत न सिर्फ हिन्दू समाज साई की रसोई से जुड़ रहे हैं बल्कि अल्पसंख्यक बिरादरी भी इससे जुड़े हैं।



महफ़ूजुर रशीद और उनके दोनों भाईयों ने बांटा खाना
आमतौर पर लोग यह मानते हैं कि इस संस्था से हिन्दू भाई ही जुड़े हुए हैं। वरिष्ठ पत्रकार महफूजूर रशीद की मां रशीदा खातुन के इंतकाल पर 15 सितंबर 24 को हो गया। उनके आश्रितों की ओर से साईं की रसोई के माध्यम से महफूजुर रशीद के बड़े भाई मो. फैयाज व छोटे भाई नेयाजुर रशीद द्वारा बुधवार को भोजन परोसा गया। भोजन बांटने में वार्ड पार्षद शगुफ्ता ताजवर सहित दर्जनों पत्रकारों ने भी सहयोग किया। गौरतलब हो कि हिन्दुओं की तरह मुस्लिम समाज में श्राद्ध भोज नहीं होता है। लेकिन मरहुमीन की मगफिरत के लिए परिवार द्वारा मदरसा में कुल व कुरआन खानी यतीम बच्चों को खाना खिलाने और दुआओं का एहतेमाम होता है। सक्षम परिवार के लोग इस परंपरा को जारी रखे हुए है। लेकिन कोई बंदिश भी नहीं है कि आप भोजन परोसें।

 बताते चलें कि बेगूसराय के पोखरिया निवासी दिवंगत सैयद मोहम्मद वारिस रजा की पत्नी व कौमी तंजीम के ब्यूरो चीफ महफूज उर रशीद की मां 82 वर्षीय रशीदा का बीते रविवार को निधन हो गया। सोमवार को जुहर की नमाज के बाद पोखरिया मस्जिद के पास उनके जनाजे की नमाज अदा की गयी और उन्हें वहीं कब्रिस्तान में सुपुर्द- ए -खाक किया गया। रशीदा खातुन तीन बेटे, दो बेटियां और पोते-पोतियां, परपोते छोड़ गई हैं।


रशीदा खातुन शमद मियाँ की बड़ी पुत्री व नवाब खानदान पहली संतान थी।

इस मौके पर साई की रसोई के संस्थापक सदस्य अमित जायसवाल व नीतेश रंजन ने बताया कि इससे पूर्व भी दर्जनों अल्पसंख्यक बिरादरी के लोग जन्मदिन या खास मौके पर यहां भोजन परोसने आते हैं। सामाजिक सद्भाव का पालन साई की रसोई करती आ रही है। लेकिन हम इसे खबर बनाने से परहेज करते हैं।

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