आधुनिक शहरों में पसर रही विकृतियों एवं विसंगतियों पर बड़ा कटाक्ष है नाटक "तिरीछ" - Natak Tirichh
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आधुनिक शहरों में पसर रही विकृतियों एवं विसंगतियों पर बड़ा कटाक्ष है नाटक "तिरीछ" - Natak Tirichh

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आशीर्वाद रंगमंडल ने मासिक नाट्य श्रृंखला के कड़ी में तिरीछ का सफल मंचन

BINOD KARN


BEGUSARAI: दिनकर कला भवन शनिवार की शाम आशीर्वाद रंगमंडल बेगूसराय द्वारा प्रथम आशीर्वाद मासिक नाट्य श्रृंखला 2023 की आठवां नाटक डिवाइन सोशल डेवलपमेंट पटना की प्रस्तुति तिरीछ (लेखक उदय प्रकाश) का सफल मंचन युवा निर्देशक श स्वरम उपाध्याय के निर्देशन में हुआ। इससे श पूर्व इस कार्यक्रम का उद्घाटन प्रमोद कुमार सिंह सिविल सर्जन, बेगूसराय, रंग निर्देशक दीपक सिन्हा, वरिष्ठ अभिनेता मोहमद फैयाजुल हक, समाजसेवी एवम बैंक ऑफ बड़ौदा से रश्मि, समाजसेवी संजय गौतम ,रंगमंडल अध्यक्ष ललन प्रसाद सिंह और अमित रौशन ने संयुक्त रूप से दीप प्रज्ज्वलित कर किया। इस अवसर पर उपस्थित सभी अतिथियों का स्वागत अंग वस्त्र और पौधा से सचिव अमित रौशन ने किया। अपने उद्घाटन भाषण में सीएस प्रमोद कुमार सिंह ने रंगमंच को समाज का आइना बताया। उन्होंने कहा कि रंगमंच है तो समाज जीवित है। हम सबको रंगमंच करने वाले को सहयोग करना चाहिए। उन्होंने पूरा नाटक देखा। रश्मि ने कहा कि हमने अमित जी के संघर्ष को काफी नजदीक से देखा है, इनके संघर्ष से युवाओं को प्रेरणा लेनी चाहिए।रंगकर्मी दीपक सिन्हा ने आशीर्वाद रंगमंडल को बधाई दिया कि आप लगातार मासिक नाट्य श्रृंखला का आयोजन कर रहे हैं। इसके उपरांत नाटक तिरिछ का मंचन प्रारंभ हुआ।


तिरिछ’ कहानी का केन्द्रीय भाव लेखक के पिताजी से सम्बन्धित है। इसका संबंध लेखक के सपने से भी है। इसके अतिरिक्त शहर के प्रति जो जन्मजात भय होता है उसकी विवेचना भी इस कहानी में की गई है। गाँव एवं शहर की जीवन–शैली का इसमें तुलनात्मक अध्ययन अत्यन्त सफलतापूर्वक किया गया है। गाँव की सादगी तथा शहर का कृत्रिम आचरण इसमें प्रतिबिंबित होता है। लेखक के पिताजी जो पचपन साल के वयोवृद्ध व्यक्ति हैं, उनकी विशिष्ट जीवन शैली है। वह मितभाषी (कम तथा आवश्यकतानुसार बोलनेवाला) हैं। उनका कम बोलना, मुँह में हमेशा तम्बाकू का भरा रहना भी है। बच्चे उनका आदर करते थे तथा उनकी कम बोलने की आदत के कारण सहमे भी रहते थे। घर की आर्थिक स्थिति संतोषजनक नहीं थी। एक दिन शाम को जब वे टहलने निकले तो एक विषैले जन्तु तिरिछ ने उन्हें काट लिया। उसका विष साँप की तरह जहरीला तथा प्राणघातक होता है। रात में झाड़ – फूंक तथा इलाज चला दूसरे दिन सुबह उन्हें शहर की कचहरी में मुकदमें की तारीख के क्रम में जाना था। घर से वे गाँव के ही ट्रैक्टर पर सवार होकर शहर को रवाना हुए। वे तिरिछ द्वारा काटे जाने की घटना का वर्णन ट्रैक्टर पर सवार अन्य लोगों से करते हैं। ट्रैक्टर पर सवार उनके सहयात्री पं. राम अवतार ज्योतिषी के अलावा वैद्य भी थे। उन्होंने रास्ते में ट्रैक्टर रोककर उनका उपचार किया। धतूरे की बीज को पीसकर उबालकर काढ़ा बनाकर उन्हें पिलाया गया। ट्रैक्टर आगे बढ़ा तथा शहर पहुँचकर लेखक के पिताजी ट्रैक्टर से उतरकर कचहरी के लिए रवाना हुए। यह समाचार पं. राम अवतारजी ने गाँव आकर बताया, क्योंकि वे ( लेखक के बाबूजी ) शाम को घर नहीं लौटे थे। विभिन्न स्रोतों से उनके विषय में निम्नांकित जानकारी प्राप्त हुई। ट्रैक्टर से उतरते समय उनके सिर में चक्कर आ रहा था तथा कंठ सूख रहा था। 


गाँव के मास्टर नंदलाल, जो उनके साथ थे। उन्होंने बताया। इस बीच वे स्टेट बैंक की देशबंधु मार्ग स्थित शाखा, सर्किट हाउस के निकट वाले थाने में गए। उक्त स्थान पर उन्हें अपराधी प्रवृत्ति तथा असामाजिक तत्व समझकर कर काफी पिटाई की गई और वे लहु – लुहान हो गए। अंत में वे इतवारी कॉलोनी गए। वहाँ उनको कहते सुना गया, ” मैं राम स्वारथ प्रसाद, एक्स स्कूल हेडमास्टर एंड विलेज हेड ऑफ …. ग्राम बकेली …. ! ” किन्तु वहाँ उन्हें पागल समझकर कॉलोनी के छोटे – बड़े लड़कों ने उनपर पत्थर बरसाकर रही और सभी कसर निकाल दी। उनका सारा शरीर लहु – लुहान हो गया। घिसते – पिटते लगभग शाम छः बजे सिविल लाइंस की सड़क की पटरियों पर बनी मोचियों की दुकान में से गणेशवा मोची की दूकान के अन्दर चले गए। गणेशवा मोची उनके बगल के गाँव का रहनेवाला था। उसने उन्हें पहचाना। कुछ ही देर में उनकी मृत्यु हो गई। इस प्रकार इस कहानी के द्वारा लेखक ने सांकेतिक भाषा शैली में आधुनिक शहरों में पसर रही विकृतियों एवं विसंगतियों पर कटाक्ष किया है। दूषित मानसिकता से ग्रसित शहरी जीवन – शैली ” तिरिछ ” की इस तरह भयानक तथा विषैली हो गई। वास्तविकता की तह में गए बगैर हम दरिन्दगी तथा अमानवीय कृत्यों पर उतर आते हैं।

लेखक का मन्तव्य ( उद्देश्य ) निम्नांकित पंक्तियों से स्पष्ट हो जाता है, ” इस समय पिता जी को कोई दर्द महसूस नहीं हो रहा होगा। क्योंकि वे अच्छी तरह से पूरी तार्किकता और गहराई के साथ विश्वास करने लगे होंगे कि सब सपना है और जैसे ही वे जागेंगे, सब कुछ ठीक हो जाएगा। ” लेखक पुनः कहता है- ” इसके पीछे पहली वजह तो यही थी कि उन्हें यह अच्छी तरह से पता था कि वे सपने के भीतर जा रहे हैं और इससे किसी को कोई चोट नहीं आएगी। ” इससे कहानी में लेखक का संदेश स्पष्ट परिलक्षित होता है।

नाटक के उपरांत सिविल सर्जन डॉ. प्रमोद कुमार सिंह ने कलाकारों को सम्मानित किया। नाटक में विवेक कुमार ने अपने सशक्त अभिनय से दर्शकों को बांधे रखा। ध्वनि कुंवर विजय, प्रकाश रियाज अहमद, सेट सुनील शर्मा और निर्देशन स्वरम उपाध्याय ने किया। मंच संचालन दीपक कुमार ने किया। कार्यक्रम को सफल बनाने में कुणाल भारती, सचिन कुमार, अरुण कुमार, धर्मेंद्र कुमार, विष्णु कुमार, बिट्टू कुमार, आशीष आनंद, राज रौशन, निगम देवी, मनोज कुमार मिश्र, कुमार गौरव ने सक्रिय भूमिका निभाई।

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