कठकरेज ने दर्शकों पर छोड़ा अमिट छाप, देवी वैदेही सभागार में आशीर्वाद रंगमंडल ने दी प्रस्तुति
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कठकरेज ने दर्शकों पर छोड़ा अमिट छाप, देवी वैदेही सभागार में आशीर्वाद रंगमंडल ने दी प्रस्तुति

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आशीर्वाद रंगमंडल प्रत्येक माह अलग-अलग मंच से देती है नाट्य प्रस्तुति, कठकरेज है 7वां मंचन 


BINOD KARN

BEGUSARAI: आशीर्वाद रंगमंडल बेगूसराय द्वारा देवी वैदेही सभागार गोदारगमा में सोमवार की शाम आयोजित आशीर्वाद मासिक नाट्य श्रृंखला के सातवें माह जुलाई में श्रवण कुमार गोस्वामी द्वारा लिखित नाटक कठकरेज का सफल मंचन किया गया। जिसका निर्देशन नाट्य निर्देशक अमित रौशन ने किया। जिसका उद्घाटन श्रीकृष्ण महिला महाविद्यालय के पूर्व प्राचार्य डॉ. सपना चौधरी, डॉ.  ह्रदय रोग विशेषज्ञ दीपक कुमार, वरिष्ठता चित्रकार सीताराम जी, डॉ. बबन कुमार पवन, विपल्लवी पुस्तकालय के अध्यक्ष रमेश सिंह, सीताराम भाजपा नेता सीताराम सिंह, रंगमंडल अध्यक्ष ललन प्रसाद सिंह और अमित रौशन ने संयुक्त रूप से दीप प्रज्ज्वलित कर किया। 

उद्घाटन भाषण करते हुए डॉ. सपना चौधरी ने कहा कि नाट्यकला अपनी अभिव्यक्ति का सबसे सशक्त माध्यम है। इस श्रृंखला में आशीर्वाद रंगमंडल ने गांवों को जोड़ा है जो काबिले तारीफ है। रंगमंडल के पूरे टीम को आप जनता का सहयोग मिलना चाहिए। डॉ. पवन ने कहा कि रंगमंच समाज को जगाने का काम करती है, रंगमंडल ने लगातार अपने कार्यक्रमों के माध्यम से हम सबको सामाजिक कुरीतियों की ओर अपने मंचन से अवगत कराती है। डॉ. दीपक कुमार ने सभी कलाकारों को बधाई देते हुए हमेशा सहयोग देने की बात कही। विपल्लवी पुस्तकालय के अध्यक्ष रमेश सिंह ने कलाकारों को बधाई देते हुए कहा कि जब भी यहां नाटक करेंगे पूरा सहयोग देंगे। वरिष्ठ चित्रकार सीताराम जी ने कहा कि आशीर्वाद रंगमंडल ने एक अभियान चलाया है कि हर माह नाटक हो और सिर्फ दिनकर कला भवन ही नहीं जिले के गांवो में भी नाटक का मंचन करेंगे। इसी कड़ी में आज सातवां नाटक है। ये नाटक वर्तमान में हर घर की कहानी है, हम सब झेल रहे हैं। आगत अतिथियों का स्वागत अध्यक्ष ललन प्रसाद सिंह और सचिव अमित रौशन ने अंग वस्त्र और पौधा भेंट कर किया। 

श्रवण कुमार गोस्वामी लिखित नाटक कठकरेज वर्तमान आर्थिक युग में रिश्तों के बिखराव को दिखाया है। आज के समय में मां बाप, सास बहू, बेटे का रिश्ता भी प्रभावित हो रहा है। इस कहानी में गंगा बाबू अपनी पत्नी कांति और दो बेटे अजय और विजय के साथ मध्यम वर्गीय जीवन जी रहे होते हैं‌। गंगा बाबू सड़क किनारे खोमचे के पास जूठा खा कर जीवन यापन करने वाले लड़के रंजन को घर ले आते हैं और अपने दोनों बेटे के साथ पालते हैं। उनके दोनों बेटे खुश हो जाते हैं कि उनको खेलने के लिए एक तीसरा साथी जो मिल गया है। समय के साथ तीनों बड़े होते हैं। गंगा बाबू का बड़ा बेटा अजय पढ़ने में काफी तेज था जो आईआईटी कर सीधा अमेरिका चला गया जो फिर कभी नहीं आया। वहीं शादी कर बस गया। उसने वहां से अपने माता- पिता को बेटी का फोटो भेजा लेकिन आया नहीं। दूसरा बेटा विजय को पढ़ाई में मन नहीं लगता था वो क्रिकेट में आगे बढ़ गया।उसकी प्रतिभा को देख कर एक अमीर लड़की ने प्रेम विवाह कर घर जमाई बना लिया, जिसके कारण वो भी घर नहीं आता है। इस प्रकार गंगा बाबू और कांति के बुढ़ापे का सहारा रज्जन बनता है जिसे उन्होंने अपने बेटे की तरह पाला पोसा है। रज्जन की दिलचस्पी दुकान में ज्यादा है और गंगा बाबू को बहुत साथ देता है। एकबार कांति बीमार हो जाती है तो गंगा बाबू बड़े बेटे को फोन करते हैं। वह आता नहीं है। लेकिन पांच सौ डॉलर भेज देता जो गंगा बाबू गुस्से में वापस कर देते हैं। तब हारकर गंगा बाबू छोटे बेटे विजय को फोन करते हैं तो फोन विजय की पत्नी काल रिसीव करती है और कहती है कि विजय से बात नहीं हो सकती है। क्योंकि वह क्रिकेट खेलने विदेश गया हुआ है। गंगा बाबू निराश होकर कांति का ऑपरेशन कराते हैं। उसे खून की जरूरत होती है तो रज्जन अपना खून देता है। वह बच जाती है, उसके बाद गंगा बाबू मान लेते हैं कि उनका एक ही बेटा है रज्जन। कांति भी उसे बहुत मानती है। गंगा बाबू और कांति को रज्जन के लिए समाज के लोगों का ताना सुनना पड़ता है लेकिन पति-पत्नी को कोई फर्क नहीं पड़ता है‌। गंगा बाबू रज्जन की शादी अपने ही जाति बिरादरी की लड़की से करने का फैसला करते हैं जिसका उनकी बिरादरी के लोगों ने विरोध किया। इस पर गंगा बाबू ने कहा कि आप लोग पंच परमेश्वर है आपका सम्मान करते हैं लेकिन रज्जन मेरा तीसरा बेटा है। हम शादी करेंगे ही और करते हैं। शादी के बाद बहु पढ़ी- लिखी आती है जिसको रज्जन पसंद नहीं है। वह रज्जन को परेशान करती है। कांति को भी बोलती है कि रज्जन की इस घर में क्या हैसियत है। वह आपका बेटा है या नौकर। कांति बहु को समझती है कि वह मेरा बेटा है। तुमको जो चाहिए सब हम देंगे‌। बहु कहती हैं कि दुकान मेरे नाम और घर रज्जन के नाम कर दीजिए, जिस पर कांति से बहस हो जाती है। रज्जन परेशान होकर अपनी पत्नी के साथ बिना गंगा बाबू से बात किए घर छोड़ कर चला जाता है। उसके जाने के बाद गंगा बाबू और कांति टूट जाते हैं लेकिन नियति को मान कांति अपने पति गंगा बाबू को सहारा देती है कि फिर कल नई सुबह होगी। गंगा बाबू सोचते हैं कि उन्होंने तो रज्जन को अपना बेटा मान ही लिया था तो वो कठकरेज कैसे हो गया। एक सुबह दरवाजे पर कोई खटखटा रहा है। गंगा बाबू पूछते हैं कौन हो। फिर खटखटाता है, तो कांति दौर कर दरवाजा खोलती है तो सामने रज्जन आता है, दोनों को प्रणाम करता है। गंगा बाबू को आश्चर्य होता है कि रज्जन तुम तो घर छोड़ कर चला गया था, तो रज्जन कहता है कि मैं आप दोनों को छोड़ कर कहा जाऊंगा। आप दोनों तो मेरे भगवान हैं। मैं तो उस सूर्पनखा को उसके बाप के घर छोड़ने गया था जो इस घर को लंका बनाने पर तुली हुई थी। वह दुकान खोलने चला जाता है। गंगा बाबू कांति से पूछते हैं कि ये कैसे हो गया, तो कांति कहती हैं कि आप नहीं समझेंगे, ये सब त्रिया चरित्र का प्रभाव था। अपना रज्जन बिलकुल नहीं बदला है। गंगा बाबू ने बहु को समझा कर घर लाने की बात कही, जिसे कांति ने भी साथ दिया और दोनों खुश हो गए।  ये कहानी हर परिवार की है। इससे हर घर प्रभावित हो रहा है।

नाटक में गंगा बाबू की भूमिका मोहित मोहन, कांति की भूमिका कविता कुमारी, रज्जन की भूमिका कुणाल भारती, बहु की भूमिका कृष्णा कुमारी, सूत्रधार की भूमिका सचिन कुमार और अरुण कुमार, ग्रामीण की भूमिका में बिट्टू कुमार, अरुण, सचिन कुमार ने निभाया। प्रकाश संयोजन सचिन कुमार और संगीत संयोजन सूरज कुमार ने किया। निर्देशन और परिकल्पना अमित रौशन ने किया। इस कार्यक्रम का मंच संचालन दीपक कुमार ने किया। धन्यवाद ज्ञापन सचिव अमित रौशन ने किया।

अमित रौशन ने विपल्लवी पुस्तकालय और देवी वैदेही सभागार के प्रबंधन समिति के पूर्व विधायक राजेंद्र राजन, अध्यक्ष रमेश सिंह, आनंद कुमार, अवनीश राजन, मनोरंजन कुमार सहित सभी लोगों का आभार जताया जिनके सहयोग से इस नाटक की प्रस्तुति संभव हो पायी।


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