Samrat Chaudhary Bihar BJP New President, Hindi Editorial by Vikas Varma, Top Hindi News |
संपादक (www.tophindinews.com)
Published on 25 March 2023 (Update: 25 March 2023, 09:01 IST)
भारतीय जनता पार्टी की बिहार इकाई बहुत उत्साहित है!
उत्साहित होना भी चाहिए, आखिर एक तरफ जहां राष्ट्रीय जनता दल में तेजस्वी यादव ने कमान संभाल ली थी, वहीं भारतीय जनता पार्टी में पुरानी पीढ़ी के नेता ही कमान संभाल रहे थे, लेकिन अब भाजपा ने भी एक युवा और सक्रिय नेता पर दाव लगा दिया है।
भाजपा पर अक्सर यह आरोप लगाया जाता था, कि नीतीश कुमार के दबाव में अपनी बिहार इकाई को उसने कभी उभरने नहीं दिया। इसका कारण भी बहुत छिपा हुआ नहीं है। भारतीय जनता पार्टी के एक लंबे समय तक पोस्टर बॉय रहे सुशील मोदी तो नीतीश कुमार के पीछे-पीछे थे, और एक तरह से उनको नीतीश का 'लक्ष्मण' कहा जाता था। इसीलिए तो भाजपा ने उन्हें राज्य से हटाकर केंद्र शिफ्ट कर दिया।
बहरहाल, कारण चाहे जो भी रहा हो, भाजपा, बिहार में प्रभावी नेतृत्व विकसित करने में उस स्तर तक सफल नहीं रही जिस स्तर तक उसे होना चाहिए था।
कुछ सक्रिय नेता बिहार में जरूर थे, लेकिन वहां का जातिगत समीकरण उस लिहाज से फिट नहीं बैठता था, कि वह राज्य में आगे बढ़ सकें!
कोई माने या ना माने, सम्पूर्ण देश में, और खासकर बिहार में तो जातिगत वोट बैंक एक बड़ी सच्चाई है, और सम्राट चौधरी इस खाँचें में फिट बैठते हैं।
सम्राट चौधरी पहले बिहार विधान परिषद में भाजपा की ओर से प्रतिपक्ष के नेता बने, और अब बिहार बीजेपी के अध्यक्ष बन चुके हैं। अध्यक्ष बनते ही उन्होंने हुंकार भरी कि, "उनकी प्राथमिकता न केवल पार्टी को विस्तार देना है, बल्कि अपने कार्यकर्ताओं के मान सम्मान की रक्षा करते हुए बिहार में सरकार भी बनाना है।"
सबसे खास बात यह है कि जातिगत समीकरण में फिट बैठने के अलावा, इनकी उम्र भी 53 साल ही है, तो इन्हें आक्रामक और वादा निभाने वाला नेता भी माना जाता है।
जातिगत समीकरण देखें, तो यादवों के बाद कुर्मी - कोइरी का वोट बैंक बिहार में सबसे ज्यादा है। यादवों की आबादी जहां भी है, वहां कुर्मी भी हैं। ऐसा माना जाता है कि बिहार में यादव वोट बैंक का एक हद तक मुकाबला कुर्मी - कोइरी का वोट बैंक ही कर सकता है। आपको बात दें कि, कुर्मी वोट बैंक नीतीश कुमार का भी आधार रहा है, और इसी आधार पर वह अपनी मुख्यमंत्री की कुर्सी बचाने में सफल रहे हैं।
जहां तक सम्राट चौधरी की बात है, तो इनके पिता शकुनी चौधरी पहले समता पार्टी और बाद में राजद के बड़े नेताओं में शुमार रहे और उन्हें कुशवाहा समाज का बड़ा नाम माना जाता है।
सम्राट चौधरी भी राजनीतिक अनुभवों कच्चे नहीं रहे हैं। वह 1999 की राबड़ी देवी सरकार में कृषि मंत्री बन गए थे, तो 2014 नगर विकास विभाग के मंत्री बने। 2018 में वह राजद छोड़कर भाजपा में शामिल हुए, और NDA की सरकार में पंचायती राज मंत्री बने।
बड़ा दिलचस्प है कि भारतीय जनता पार्टी, आर.एस.एस. या भाजपा के बैकग्राउंड से आए नेताओं को ही आगे नहीं बढ़ा रही है, बल्कि वह चाहें मध्यप्रदेश ले लीजिए, चाहें असम ले लीजिए और अब बिहार भी ले लीजिए, मात्र 5 साल पहले राजद से आये नेता को उसने बिहार की कमान दे दी है।
मोदी और अमित शाह की भाजपा में इस परिवर्तन को देखते हुए यह समझना कठिन नहीं है कि, आखिर देशभर में भाजपा बढ़ क्यों रही है। वह अपनी विचारधारा और नेताओं की स्वीकार्यता में 'लचीलापन' लाती जा रही है।
बहरहाल सम्राट चौधरी पर भाजपा का यह दाव बिहार में कितना सफल होगा यह देखने वाली बात होगी। अपनी राजनीतिक विरासत से आगे बढ़कर उन्हें जनता में लोकप्रियता भी हासिल है, तो उनकी भाषण शैली भी अच्छी होने के साथ-साथ समाज में उनकी पकड़ भी ठीक ठाक है।
कुल मिलाकर उन्हें हवा हवाई नेता नहीं माना जाता है, और किसी मजबूत और आधार वाले नेता को आगे न करना भाजपा लंबे समय तक बर्दाश्त नहीं कर सकती थी, क्योंकि अब नीतीश के कंधे पर सवार होने की बजाय, अपने पैरों पर खड़े होने की कोशिश में है।
यूं तो नीतीश कुमार से भाजपा की नज़दीकियों की बातें बीते कुछ महीनों से जरूर हो रही थी, लेकिन सम्राट चौधरी अब जब भाजपा के अध्यक्ष नियुक्त हो गए हैं, तो नीतीश कुमार से किसी भी प्रकार की नजदीकी पर एक तरह से विराम लग गया है।
नीतीश कुमार की प्रथम शर्त संभवतः यही थी कि, उनके कद से आगे बढ़ने वाला नेता कोई ना हो, लेकिन अब एक जातिगत आधार के नेता को आगे बढ़ाने का संकेत भाजपा स्पष्ट रूप से दे चुकी है।
हालांकि हाल ही में कुशवाहा समुदाय से ही उपेंद्र कुशवाहा जदयू से अलग हुए हैं, और उन्हें केंद्र से सिक्योरिटी भी मिली है, तो बीजेपी से उनकी नजदीकी की बात भी की जा रही थी। लेकिन अब कुशवाहा समुदाय से ही सम्राट चौधरी को जब बीजेपी आगे बढ़ा रही है, कब उपेंद्र कुशवाहा के लिए जगह उतनी खुली नहीं मिलेगी।
हाँ! साइड रोल में वह ज़रूर रहेंगे, और भाजपा भी उन्हें साइड रोल में ही रखना चाहेगी!
दिलचस्प बात यह है कि भारतीय जनता पार्टी इसी 2 अप्रैल को रोहतास में सम्राट अशोक की जयंती बड़े स्तर पर मनाने की तैयारी कर रही है, जिसमें अमित शाह भाग ले सकते हैं। जाहिर तौर पर बिहार की राजनीति को साधने का एक माध्यम है।
हालाँकि, तेजस्वी यादव के यादव मुस्लिम कॉम्बिनेशन के बड़े बेस वोट-बैंक को चुनौती देना भाजपा के लिया आसान नहीं होने वाला है। वैसे भी नीतीश कुमार की मजबूरी बन गयी है कि वह तेजस्वी यादव के साथ जुड़े रहें। ऐसे में बेशक सम्राट चौधरी पर भाजपा ने दांव लगाया है, किन्तु 2024 के लोकसभा चुनाव में, बिहार से कितनी लोकसभा सीटें भाजपा निकाल पाती है, यह आंकलन कोई चमत्कारिक नहीं होने वाला है!
चलते चलते आपको यह भी बता दें कि पिछले अप्रैल में सम्राट अशोक की ही जयंती को लेकर पटना में एक बड़ा आयोजन किया गया था, जिसके आयोजनकर्ता खुद सम्राट चौधरी थे। अब उनको इस आयोजन का फल तो मिल गया है, लेकिन बिहार भाजपा को क्या फल मिलता है यह देखने वाली बात होगी !
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