गंगा समग्र के राष्ट्रीय अधिवेशन के दूसरे दिन - Ganga Samagra
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गंगा समग्र के राष्ट्रीय अधिवेशन के दूसरे दिन - Ganga Samagra

THN Network (Desk):  BINOD KARN

बृहत चर्चा के बाद प्रस्ताव पारित, निर्मलता व अविरलता का लिया संकल्प 


BEGUSARAI: गंगा ग्लोबल ज्ञान परिसर के बीएड काॅलेज में आयोजित गंगा समग्र के राष्ट्रीय अधिवेशन के दूसरे दिन शनिवार को गंगा के अविरलता व निर्मलता के संकल्प के साथ प्रस्ताव पारित किया गया। उद्घाटन सत्र में राष्ट्रीय मंत्री अवधेश कुमार गुप्त ने प्रस्ताव के किया। देश के विभिन्न भागों से आए प्रतिनिधियों ने प्रस्ताव पर चर्चा करते हुए इसे पारित कर दिया। प्रस्ताव पेश करते हुए राष्ट्रीय मंत्री अवधेश कुमार गुप्त ने कहा कि मां गंगा और अन्य माता समान नदियाँ प्रकृति की वरदान हैं । जिसके तट पर मानव सभ्यता का विकास हुआ है। सनातन काल से नदियों को देवतुल्य मानकर हमने इन संपदाओं का संरक्षण करने का जो प्रण किया था, आज वह प्रण हमारे प्रयासों की कमी से धूमिल हो रहा है। हाल के दशकों में देश में तेजी से हुई शहरीकरण, मानवीय मांग और विकास के परिणाम स्वरूप कई समस्याओं ने जन्म लिया है। उदाहरण के लिए जोशीमठ में दरकती दरारें यह सिद्ध करती हैं कि प्राकृतिक विवर्तनिकियों की ओर हमारी समाज कितनी सीमित है। जोशीमठ में पैदा हुई दरारों से पर्यावरणीय और मानव सभ्यता पर किस प्रकार का प्रभाव है। यह समझना तब और आवश्यक हो जाता है जब बात प्रकृति और मानव के ह्रास के हो। । क्योंकि प्रश्न केवल जोशीमठ के परिदृश्य का नहीं है बल्कि यहां मुख्य अभिप्राय  इस बात का है की प्रकृति के प्रति हमारी  समझ कितनी गंभीर है।  इन आपदाओं को पर्यावरणीय और मानव उत्थान के दृश्य किस प्रकार से अवसर के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।
 

 जैसे की हम सब भली- भांति जानते हैं कि भारतवर्ष की जीवन रेखा, पतित पावनी मां गंगा का जीवन खतरे में है। गंगा जी अपनी सहयोगी धाराओं के सहयोग से 40 करोड़ से अधिक  जनसंख्या और असंख्य जीव जन्तुओं का पोषण करती हैं। समय के साथ जनसंख्या में वृद्धि, अनियोजित औद्योगिकीकरण और कृषि क्षेत्र में अंधाधुंध रासायनिक प्रयोग के कारण गंगा एवं इसकी सहायक नदियों में प्रदूषक तत्त्वों में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। हर दिन सीवेज और औद्योगिक क्षेत्रों से लगभग 350 करोड़ लीटर अपशिष्ट जल सीधे गंगा जी में बहा दिया जाता है। इससे उनका दम घुट रहा है, और उनकी गोद में पलने वाले असंख्य जन्तु-वनस्पतियां भी इससे नहीं बच सकते। गंगा की पारिस्थितिकी नष्ट हो रही है। यही स्थिति यमुना जी आदि नदियों की है। उनके एक हिस्से में व्यावहारिक रूप से कोई भी जलीय जीव  पिछले एक दशक से जीवित नहीं रह गया है। उन करोड़ों  लोगों पर भी इसका सीधा असर पड़ा है, जिनकी निर्भरता इन नदियों पर है। 

गंगा जी व दूसरी नदियों में  प्रवाह कम  होने और अपशिष्ट जल मिलने से उनकी गुणवत्ता पर व्यापक असर  हुआ है। विकृत धार्मिक आस्थाएं और सामाजिक कुप्रथाएं भी गंगा नदी में प्रदूषण को बढ़ाने के लिये ज़िम्मेदार हैं। नदी के ठीक तट पर शवों का अंतिम संस्कार एवं आंशिक रूप से जले हुए शव नदी में बहाना, धार्मिक कृतियों के निर्माल्य का बड़ी मात्रा में नदी मे विसर्जित करना आदि प्रथाएं नदी के जल की गुणवत्ता को नष्ट करती है।
     सीवरेज के प्रबंधन के लिए अभी तक सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) ही उपाय दिखा है। नि:सन्देह इस व्यवस्था से स्थितियां थोड़ी सुधरी हैं। लेकिन एसटीपी के निर्माण की बड़ी लागत, रखरखाव के भारी खर्च और भ्रष्ट आचरण के कारण यह व्यवस्था व्यावहारिक रूप से कारगर सिद्ध नहीं हो पा रही हैं। स्थानीय निकायों में पर्याप्त धन की कमी, बिजली की अनुपलब्धता और सरकारी तंत्र की संवेदनहीनता के कारण कई एसटीपी अधिकांश समय क्रियात्मक ही नही रहते।इनसे तथा कथित शोधित जल पुनः नदियों में ही प्रवाहित कर दिए जाते हैं। गंगा किनारे बसे कानपुर, इलाहाबाद और वाराणसी  आदि शहरों में बाहरी इलाकों की बड़ी आबादी के घरेलू अपशिष्ट के प्रबंधन  की कोई व्यवस्था नहीं है। ऐसे में खुले नालों ने नदी तक खुद ही अपना रास्ता बना लिया है। 
 अतः गंगा समग्र केंद्र और राज्य सरकारों से यह मांग करता है की सभी शहरों में सीवर व्यवस्था को पर्याप्त एवं सुदृढ़ बनाया जाए। सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) से निकलने वाले जल को नदियों में न डालकर अन्य कार्य यथा सिंचाई, उद्योग आदि के लिए उपयोग किया जाए।
गंगा समग्र का गंगा भक्त सभी देशवासियों से निवेदन है कि गाङ्गेय जलं निर्मलम्"-
 अर्थात  गंगा का जल निर्मल हो यानी भारत की सभी नदियों का जल निर्मल हो हर मानव को निर्मल जल मिले ,गंगे तव दर्शनान्मुक्ति  सही अर्थ में प्रत्यक्ष हो, इसके लिए हम सभी संपूर्ण शक्ति से जुट जाएं।
कुछ भी हो गंगा हमारी देश की पहचान है। इनकी स्वच्छता  और  निर्मलता सुरक्षित रहे एवं प्राकृतिक कल-कल करती जलधारा पूर्वक बहती रहे । हम सभी का यही प्रयास रहे कि किसी भी कीमत पर देश की पहचान को नष्ट होने से बचाना है। मां गंगा को अविरल और निर्मल बनाना है। प्रस्ताव पर बहस के दौरान राष्ट्रीय मंत्री रामाशंकर सिन्हा ने मंच संचालन किया।

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