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BINOD KARN
BEGUSARAI: कंपकंपाती ठंड से जनजीवन बेहाल है। डाटा के हिसाब से भारत में एक साल में 7 लाख 74 हजार मौत मौसम की अनियमितता की वजह से हो जाती है जबकि आधे से ज्यादा मौत रिकॉर्ड में नहीं आ पाती। ठंड का प्रकोप तो सभी झेल रहे हैं। लेकिन सबसे अधिक खतरा किसे है। इसको लेकर बिहार सरकार के आपदा प्रबंधन विभाग ने एडवाइजरी जारी किया है। एडवाइजरी की मानें तो सबसे अधिक खतरा उच्च रक्तचाप, मधुमेह व हृदय रोगियों के लिए है। ऐसे में इन रोगियों का बचाव यक्ष प्रश्न है। क्योंकि कई बार जब मरीज हास्पीटल पहुंचता है तो काफी विलंब हो चुका होता है। शुरुआती पहचान और बचाव के जरिए हम ऐसी नौबत आने को रोक सकते हैं।
ठंड जनित रोगों से बचना है तो शरीर के तापमान को रखें नियंत्रित : हार्ट सर्जन डॉ शांडिल्य
इन सवालों पर विस्तारपूर्वक जानकारी दे रहे हैं उत्तर बिहार के प्रथम और एकमात्र हार्ट सर्जन एवं ऐलेक्सिया साईं हृदयम के निदेशक डॉ. धीरज शांडिल्य। उनका कहना है कि ठंड में अकस्मात मृत्यु से बचना है तो हमें अपने शरीर के तापमान को एक नियमित दायरे में नियंत्रित करना सीखना होगा और शरीर के गिरते तापमान को शुरुआती दौर में पहचानना होगा।
दरअसल, हमारे शरीर का हर अंग सुचारू रूप से तभी काम कर सकता है जब हमारे शरीर का तापमान एक निश्चित दायरे यानी 36.5 से 37.5 में बना रहता है। जब तापमान 35 डिग्री से कम हो जाता है तो बीमारी का लक्षण प्रकट होने लगता है।विस्तारपूर्वक जानकारी देते हुए उन्होंने इसके कारण, लक्षण और निवारण के बारे में बताया।
क्या होता है ठंड में
सामान्यतः हमारे शरीर के तापमान को बनाए रखने के लिए एक नियंत्रित तरीके से गर्मी का उत्पादन और क्षय होता है जिससे शरीर के अंदर का तापमान एक निश्चित दायरे में बना रहता है, गर्मी का उत्पादन मुख्यत मांसपेशी, हृदय और लिवर में होता है। इसका क्षय मुख्यत: फेफड़े से होता है। ठंड के मौसम में जब बाहर का वातावरण तापमान गिराता है तो शरीर को अपने अंदरूनी तापमान को बनाए रखने के लिए बहुत मेहनत करनी पड़ती है। अंदरूनी तापमान को बनाए रखने के लिए व्यक्ति के दिमाग में एक अंग होता है जिसका नाम हाइपोथैलेमस है। यह हमारे शरीर के तापमान को नियंत्रित करता है। जब वातावरण का तापमान घटता है तो शरीर का तापमान घटने लगता है। लेकिन हाइपोथैलेमस इस बात को महज चंद सेकंड में समझ जाता है और शरीर के अंदर के तापमान को बढ़ाने के लिए कई प्रकार की रासायनिक संदेश और रासायनिक हरकत करती है। जिसमें सबसे मुख्य है, मांसपेशी की सिकुड़न का तेज हो जाना, खून की नली में सिकुड़न आना। इस सिकुड़न की वजह से हमारे शरीर में तापमान गिरना कम हो जाता है और शरीर को गर्मी खोने से बचाती है।
ब्रेन हेमरेज, हार्ट अटैक, हृदय गति का अनियमित हो जाना है मौत का मुख्य कारण
ब्रेन हेमरेज
रक्त नली में सिकुरन होने से खून की नली का आकार छोटा हो जाता है। नतीजन खून की नली में बहते हुए रक्त का दबाव भी बढ़ जाता है। जिसकी वजह से रक्तचाप यानी ब्लड प्रेशर बढ़ जाता है। यह बढ़ा हुआ रक्तचाप कई बार खास करके बुजुर्गों में जब मस्तिष्क तक पहुंचता है तो मस्तिष्क की नाजुक धमनियां इस दबाव को नहीं झेल पाते हैं। फलस्वरूप दिमाग की छोटी धमनियां फट जाती है जिसकी वजह से अंदर बहता हुआ खून दिमाग में आ जाता है। इसी का नाम ब्रेन हेमरेज है। अगर किसी व्यक्ति को पहले से हृदय की बीमारी अथवा रक्तचाप की बीमारी है तो इनके लिए धमनियों का सिकुड़ना आम मनुष्य की तुलना में ज्यादा घातक हो जाता है, क्योंकि उच्च रक्तचाप के मरीज में रक्त का दबाव पहले से ही बढ़ा होता है। उपर से अगर आप ठंड में जाते हैं तो आपके शरीर द्वारा तापमान को गिरने से बचाने के क्रम में जो रक्त नली सिकुड़ती है, तो वह रक्तचाप, हृदय मरीज और मधुमेह में आम लोगों की तुलना में ज्यादा घातक हो जाता है नतीजा ब्रेन हेमरेज।
हार्ट अटैक और धड़कन
ठंड में हार्ट अटैक की संभावना कई गुना बढ़ जाती है। अमूमन यह अहले सुबह होती है जिस वक्त हमारे शरीर का तापमान बाकी वक्त की तुलना में एक से डेढ़ डिग्री कम होता है। दरअसल ठंड में हमारे रक्त नली में खून के प्रवाह की रफ्तार धीमी हो जाती है जिस वजह से नली के खून में थक्का बनने की संभावना बढ़ जाती है और जब नली में खून का प्रवाह रुक जाता है तो हृदय की मांसपेशियां को रक्त नहीं मिल पाने से हृदय की मांसपेशी मर जाती है। शरीर में रक्त पंप नही हो पाता और मृत्यु हो जाती है। दूसरी समस्या जो हृदय में आती है वह है धड़कन की अनियमितता, इसमें हृदय की मांसपेशियां जल्दी- जल्दी शरीर को गर्म करने के लिए तेज धड़कने का प्रयास करती है। नतीजतन धड़कन की अनियमितता हृदय की मांसपेशी की अनियमित सिकुरण पर्याप्त मात्रा में रक्त पंप नहीं कर पाती है। इसका नतीजा बेहोशी अथवा मौत के रूप में सामने आती है।
क्या होता है मधुमेह के रोगी में
ठंड में चाहे हृदय रोग हो, उच्च रक्तचाप हो अथवा मधुमेह हो इन सब बीमारियों में रक्त की नली की सामान्य रूप से कार्य करने के तरीके और व्यवहार में फर्क हो जाता है। मधुमेह में गिरता हुआ शुगर तापमान को भी गिराता है और मधुमेह के रोगियों के धमनी में खराबी आ जाती है जिस वजह से वह मांगने के अनुसार सिकुड़ने और फैलने में कामयाब नहीं हो पाता है। शरीर का गिरता हुआ तापमान जब हाइपोथैलेमस और शरीर के कंट्रोल से बाहर हो जाता है तब शरीर के सारे अंगों के कार्य क्षमता प्रभावित हो जाती है यहां तक की मृत्यु भी हो जाती है।
तुरंत करें पहचान
ठंड के असर को आप समझने की दृष्टिकोण से तीन भागों में विभाजित कर सकते हैं
पहला चरण ( 32 से 35 डिग्री पर) कंपकपी , रोआं खड़ा होना , आम भाषा में हाथ पांव जम गया ऐसा महसूस होना, इन लक्षण का मतलब है कि आपके शरीर का तापमान गिर रहा है और शरीर परेशान है इसे सुरक्षित करने के लिए यही वो वक्त है जब हम सबसे ज्यादा गलती करते हैं, इस लक्षण को नजरंदाज कर भी ठंड में कार्य करते रहते हैं। ऐसे लक्षण दिखाई दे तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए।
दूसरा चरण- ( 28 से 32 डिग्री पर)- सुस्तपन, कंपकपी का कम अथवा खत्म हो जाना ( क्योंकि आपके शरीर की क्षमता जवाब दे रही होती है), हृदय की धड़कन का अनियमित हो जाना, ब्लड प्रेशर कम हो जाना, यादाश्त कम हो जाना, आवाज लड़खड़ाना ।
तीसरा चरण (20 से 28 डिग्री पर)- दूसरे चरण के लक्षण के अलावा बेहोशी और मौत। मधुमेह, रक्तचाप, हृदय रोग, थायराइड, किडनी, चर्म रोग सोरायसिस, वृद्ध, बच्चे, जले हुए लोग के शरीर में गर्मी को क्षय होने से बचाने की सिस्टम में त्रुटि रहती है इसीलिए मुख्यतः ऐसे लोगों को खतरा ज्यादा ह।
बचने के क्या हैं उपाय
इससे बचने के लिए एक सीधा समीकरण समझें कि शरीर के तापमान को गिरने नहीं दे, बाहर कम से कम निकलें, अपने स्किन को ठंड हवा के संपर्क में नहीं आने दें। इसके लिए कई परत में कपड़े पहने। एक्सरसाइज अभी नहीं करें, बीपी की दवाई नियमित लें। ठंड हवा सांस के माध्यम से कम से कम जाए ठंड हवा शरीर के स्किन के संपर्क में कम से कम आए ।
अगर ठंड लग जाए तो
तुरंत कई परतों में गर्म कपड़ा पहन कर, आसपास के वातावरण के हवा को सुविधानुसार गरम करें।गरम सूप, गरम पानी भी कुछ हद तक कारगर है, लहसून, अदरक भी लाभदायक है। इस पर सुधार न हो तो आपको गर्म सलाइन ड्रिप की आवश्यकता होगी। इससे भी लाभ नहीं मिला तो आपको जिस इलाज की जरूरत पड़ेगी वो अभी बेगूसराय में नहीं है और इस स्टेज का बाद खतरा काफी बढ़ जाता है इसीलिए बेहतर है कि हम इसे दूसरे चरण में जाने से पहले रोक लें।
ठंड और भ्रम
अल्कोहल आपको महसूस गर्म होने का भ्रम तो कराती है पर वस्तुत यह शरीर के तापमान को गिराती है। सिर ढकना सबसे ज्यादा जरूरी है,यह भी भ्रम है सिर से सिर्फ दस प्रतिशत गर्मी का ही क्षय होता है। हां नाक और कान के बाहरी सतह को सीधा नुकसान हो सकता है ।