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NEW DELHI : हाल ही में संपन्न हुए बिहार नगर निकाय चुनावों की वैधता पर सस्पेंस बरकरार है। निकाय चुनावों के आरक्षण रोस्टर को तय करने के लिए बनाए गए EBC कमिशन और उसकी रिपोर्ट की वैधानिकता पर शुक्रवार को सुनवाई पूरी नहीं हो सकी। इस मसले पर अपना पक्ष रखने के लिए बिहार सरकार ने दो हफ्ते का समय और मांगा, जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को समय दे दिया है। अब इस मसले पर दो हफ्ते बाद सुनवाई होगी।
बिहार के 224 नगर निकायों में 18 दिसंबर और 28 दिसंबर को दो चरणों में चुनाव संपन्न हुए हैं। जिस का रिजल्ट 20 और 30 जनवरी को आ गया था। इसके बाद 13 जनवरी को सभी नवनिर्वाचित नगर निकायों के वार्ड पार्षद, मेयर-डिप्टी मेयर और मुख्य पार्षद व उप मुख्य पार्षद ने शपथ भी ग्रहण कर लिया है। लेकिन चुनाव की वैधानिकता अभी भी सवालों के घेरे में है। इससे संबंधित मामलों की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। इसमें सरकार की ओर से गठित अति पिछड़ा वर्ग आयोग की योग्यता पर फैसला होना है। क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने 28 नवंबर के अपने आदेश में बिहार के नगर निकायों में आरक्षण रोस्टर तैयार करने के लिए सरकार द्वारा गठित EBC कमिशन को डेडिकेटिड कमिशन नहीं माना था और बिहार सरकार को अपना पक्ष रखने के लिए चार हफ्ते का समय देते हुए मामले की सुनवाई 20 जनवरी को तय किया था। लिहाज़ा शुक्रवार को इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई मगर बिहार सरकार ने इस मामले में जवाब दाखिल करने के लिए दो हफ्ते का समय और मांगा। जिस पर कोर्ट ने सरकार को दो हफ्ते का समय और दिया है तथा मामले की सुनवाई दो हफ्ते के लिए टाल दी है।
मालूम हो कि पटना हाई कोर्ट की तरफ से नगर निकाय चुनाव पर रोक लगाने के बाद बिहार सरकार की तरफ से पांच अक्टूबर को अति पिछड़ा वर्ग आयोग गठित किया गया था। इस आयोग ने 29 अक्टूबर को अपनी रिपोर्ट बिहार सरकार को सौंप दी। लेकिन इससे पहले ही इस आयोग की वैधानिकता को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी। जिस पर सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने सरकार द्वारा गठित अति पिछड़ा वर्ग आयोग को डेडिकेटेड कमिशन मानने से इनकार कर दिया। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद भी सरकार उसी कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर राज्य निर्वाचन आयोग को चुनाव कराने की अनुशंसा कर दी। और अनुशंसा मिलते ही राज्य निर्वाचन आयोग ने चुनाव के लिए नए डेट की भी घोषणा कर दी और चुनाव करा लिए गए। आयोग की रिपोर्ट के बाद भी केवल चुनाव के डेट में ही बदलाव किया गया और इसके अलावा इसमें कोई बदलाव नहीं किया गया। सभी निकायों में आरक्षण का रोस्टर पूर्ववत रखा गया। कानून के जानकारों का कहना है कि पटना हाईकोर्ट के आदेश के बावजूद बिहार सरकार ने निकाय चुनावों के लिए आरक्षण का रोस्टर तैयार करने में ट्रिपल टेस्ट की खानापूर्ति की है।