अब डिप्टी मेयर/ डिप्टी चेयरमैन पद के आरक्षण व चुनाव का फंसा पेंच? सुप्रीम कोर्ट का बिहार सरकार को नोटिस
Ad Place!

अब डिप्टी मेयर/ डिप्टी चेयरमैन पद के आरक्षण व चुनाव का फंसा पेंच? सुप्रीम कोर्ट का बिहार सरकार को नोटिस



THN NETWORK 


NEW DELHI/PATNA :  बिहार में नगर निकायों का चुनाव आरक्षण पर कानूनी पचड़े में फंसता जा रहा है। निकायों में सीटों का आरक्षण सुप्रीम कोर्ट के ट्रिपल टेस्ट के आधार पर कराने के पटना हाईकोर्ट के आदेश पर बिहार सरकार ने अभी अमल शुरू ही किया है कि अब एक और नया कानूनी पेंच फंस गया है। 

दरअसल निकाय चुनाव में नया कानूनी पेंच डिप्टी मेयर व डिप्टी चेयरमैन के पद के आरक्षण को लेकर फंस गया है। सुप्रीम कोर्ट (SC) में ओमप्रकाश नामक शख्स ने SLP दाखिल कर बिहार सरकार के उस फैसले को चुनौती दी है कि सरकार एक ही नगर निकाय में मेयर और डिप्टी मेयर दोनों पदों को कैसे आरक्षित कर सकती है? साथ ही डिप्टी मेयर/डिप्टी चेयरमैन के पद के लिए सीधे निर्वाचन कराने के सरकार के फैसले को भी चुनौती दी गई है। इस SLP पर सुप्रीम कोर्ट के सीनियर एडवोकेट नीरज किशन कौल और गोपाल शंकरनारायण, एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड राहुल श्याम भंडारी की ओर से बहस सुनने के बाद जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जेबी पारदीवाला की डबल बेंच ने बिहार सरकार को नोटिस जारी किया है। डबल बेंच ने सरकार से पूछा है कि क्या एक नगर निगम में मेयर-डिप्टी मेयर और चेयरमैन-डिप्टी चेयरमैन का पद आरक्षित किया जा सकता है? दायर याचिका में कहा गया है कि बिहार नगर निगम अधिनियम, 2007 में दिनांक 2 अप्रैल, 2022 के संशोधन के माध्यम से राज्य सरकार ने अधिनियम की धारा 29 में संशोधन किया है और आरक्षण का दायरा डिप्टी मेयर के पद तक बढ़ा दिया है। जबकि संशोधन से पहले, मेयर-डिप्टी मेयर और चेयरमैन-डिप्टी चेयरमैन का चुनाव वार्ड पार्षदों के वोट से होता था। साथ ही डिप्टी मेयर व डिप्टी चेयरमैन की सीट आरक्षित पद नहीं था, क्योंकि वह बिहार नगर अधिनियम, 2007 की धारा 26 के अनुसार कोई स्वतंत्र कार्य नहीं करती है। सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिका में कहा गया है कि- उप मुख्य पार्षद का पद जो केवल एक नाममात्र का पद है और केवल मुख्य पार्षद की अनुपस्थिति में अपने कार्यों का प्रयोग करता है, उसके लिए सीधे चुनाव कराने की कोई आवश्यकता नहीं है बल्कि यह सरकारी धन और समय की बर्बादी है। हालांकि अनुच्छेद 243-T  और विशेष रूप से अनुच्छेद 243T(4) यह स्पष्ट करता है कि यह नगर पालिकाओं में केवल चेयरपर्सन का कार्यालय है जो अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और महिलाओं के लिए आरक्षित हो सकता है। लेकिन अनुच्छेद 243-T डिप्टी मेयर व डिप्टी चेयरमैन के कार्यालय के आरक्षण के बारे में कुछ नहीं कहता है। याचिका में कहा गया है कि यहां तक कि बिहार नगर अधिनियम, 2007 की धारा 26 के अनुसार, एक उप मुख्य पार्षद कोई स्वतंत्र कार्य नहीं करता है और वह केवल मुख्य पार्षद की अनुपस्थिति में मुख्य पार्षद की शक्तियों और कार्यों का प्रयोग करता है। स्पष्ट है कि उप मुख्य पार्षद बिहार नगर अधिनियम, 2007 की धारा 26 के अनुसार केवल एक प्रत्यायोजित पद है और इसका कोई संवैधानिक दर्जा नहीं है।" बिहार नगर अधिनियम 2007 के तहत उप मुख्य पार्षद पद को मुख्य पार्षद के समान अधिकार, जिम्मेदारी और कार्य नहीं हैं।" 

इन आधारों पर, याचिकाकर्ता ने उप मुख्य पार्षद पद के लिए सीधे निर्वाचन कराने के सरकार के फैसले को रद्द करने तथा इस पद को पूरे बिहार में अनारक्षित कर पुरानी व्यवस्था के तहत पार्षदों द्वारा निर्वाचित करने की मांग की है। अंतरिम प्रार्थना के रूप में, याचिकाकर्ता ने याचिका पर अंतिम फैसला आने तक उप मुख्य पार्षद के पद पर आरक्षण के संबंध में 2022 संशोधन पर रोक लगाने की मांग की है।

Post a Comment

Previous Post Next Post
Your Advertisement can come here!